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शेर
हम रू-ब-रू-ए-शम्अ हैं इस इंतिज़ार में
कुछ जाँ परों में आए तो उड़ कर निसार हों
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
रू-ब-रू आईने के मैं हूँ नज़र वो आए
हो भी सकता है ये होना मगर आसान नहीं
इन्तेसार हुसैन आबिदी शाहिद
शेर
हुज़ूर-ए-दुख़्तर-ए-रज़ हाथ पाँव काँपते हैं
तमाम मस्तों को रअशा है रू-ब-रू-ए-शराब
मुनीर शिकोहाबादी
शेर
हट के रू-ए-यार से तज़ईन-ए-आलम कर गईं
वो निगाहें जिन को अब तक राएगाँ समझा था मैं
मजरूह सुल्तानपुरी
शेर
हाल-ए-दिल क्यूँ कर करें अपना बयाँ अच्छी तरह
रू-ब-रू उन के नहीं चलती ज़बाँ अच्छी तरह