aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "bad-havaasii"
ख़ुशी मिली तो ये आलम था बद-हवासी काकि ध्यान ही न रहा ग़म की बे-लिबासी का
पलटने वाले परिंदों पे बद-हवासी हैमैं इस ज़मीं का कहीं आख़िरी शजर तो नहीं
हज़ार बार हवाओं से दुश्मनी होगीबस एक बार चराग़ों से दोस्ती के लिए
समझी गई जो बात हमारी ग़लत तो क्यायाँ तर्जुमा कुछ और है आयत कुछ और है
जफ़ा के ज़िक्र पे वो बद-हवास कैसा हैज़रा सी बात थी लेकिन उदास कैसा है
पहचान अपनी हम ने मिटाई है इस तरहबच्चों में कोई बात हमारी न आएगी
अम्न का क़त्ल हो गया जब सेशहर अब बद-हवास रहता है
बजाए मय दिया पानी का इक गिलास मुझेसमझ लिया मिरे साक़ी ने बद-हवास मुझे
ये सर-ब-मोहर बोतलें हैं जो शराब कीरातें हैं उन में बंद हमारी शबाब की
गो हर्फ़-ओ-अश्क दोनों थे सामान-ए-गुफ़्तुगूफिर भी हमारी बात में इबहाम रह गया
हमारी ख़ैर है लेकिन बस इक गुज़ारिश हैहमारे बाद किसी से भी यूँ नहीं करना
साठ पैंसठ बरस के बा'द आया'इश्क़ मुझ को हवस के बा'द आया
मुझ को हवस-ए-बादा-ओ-साग़र नहीं साक़ीउन मस्त निगाहों का बस इक जाम बहुत है
ग़रीब को हवस-ए-ज़िंदगी नहीं होतीबस इतना है कि वो इज़्ज़त से मरना चाहता है
इक बार अगर क़फ़स की हवा रास आ गईऐ ख़ुद-फ़रेब फिर हवस-ए-बाल-ओ-पर कहाँ
हमारी नाव की क़िस्मत में शायदकिसी बूढ़े शजर की बद-दु'आ है
बहुत कुछ कहा है करो 'मीर' बसकि अल्लाह बस और बाक़ी हवस
कौन से शौक़ किस हवस का नहींदिल मिरी जान तेरे बस का नहीं
हम ने तो मूँद लीं आँखें ही तिरी दीद के बादबुल-हवस जानते हैं कोई हसीं कितना है
इक हमारी सदा थी इस बन मेंलो जी ख़ामोश हो गए हम भी
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