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शेर
दिल ने हर दौर में दुनिया से बग़ावत की है
दिल से तुम रस्म-ओ-रिवायात की बातें न करो
अब्दुल मतीन नियाज़
शेर
है यूँ कि कुछ तो बग़ावत-सिरिश्त हम भी हैं
सितम भी उस ने ज़रूरत से कुछ ज़ियादा किया