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शेर
ऐ हिज्र वक़्त टल नहीं सकता है मौत का
लेकिन ये देखना है कि मिट्टी कहाँ की है
हिज्र नाज़िम अली ख़ान
शेर
मैं तर्क-ए-तअल्लुक़ पे भी आमादा हूँ लेकिन
तू भी तो मिरा क़र्ज़-ए-ग़म-ए-हिज्र अदा कर
हसन अब्बास रज़ा
शेर
न जाने कितनी शमएँ गुल हुईं कितने बुझे तारे
तब इक ख़ुर्शीद इतराता हुआ बाला-ए-बाम आया