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शेर
लैला ओ मजनूँ की लाखों गरचे तस्वीरें खिंचीं
मिल गई सब ख़ाक में जिस वक़्त ज़ंजीरें खिंचीं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
अफ़्साना-ए-मजनूँ से नहीं कम मिरा क़िस्सा
इस बात को जाने दो कि मशहूर नहीं है
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
शेर
मिस्ल-ए-मजनूँ जो परेशाँ है बयाबान में आज
क्यूँ दिला कौन समाया है तिरे ध्यान में आज
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
सच इश्क़ में हैं आशिक़ ओ माशूक़ बराबर
जो मुश्किल-ए-मजनूँ है सो है मुश्किल-ए-लैला
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
क़िस्सा-ए-मजनूँ पसंद-ए-ख़ातिर जानाना है
वर्ना ख़्वाब-आवर तो अपने ग़म का भी अफ़्साना है