aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "be-aas"
लोग कहते हैं कि बद-नामी से बचना चाहिएकह दो बे इस के जवानी का मज़ा मिलता नहीं
शहर बे-आब हुआ जाता हैअपनी आँखों में बचा लूँ पानी
जो तिरे ख़ित्ता-ए-बे-आब की ख़्वाहिश न बनाकुलबुलाता है वो दरिया किसी कोहसार में गुम
काँटे से भी निचोड़ ली ग़ैरों ने बू-ए-गुलयारों ने बू-ए-गुल से भी काँटा बना दिया
बू-ए-गुल था मैं हाथ क्या आताकितने सय्याद ले के दाम आए
कभी न ख़ाली मिला बू-ए-हम-नफ़स से दिमाग़तमाम बाग़ में जैसे कोई छुपा हुआ है
मिसाल-ए-माही-ए-बे-आब मौज तड़पा कीहबाब फूट के रोए जो तुम नहा के चले
घेर लेती है कोई ज़ुल्फ़, कोई बू-ए-बदनजान कर कोई गिरफ़्तार नहीं होता यार
बू-ए-इक़रार भी आती हो जो इंकार के साथऐसे इंकार पसंदीदा हैं इक़रार के साथ
बा-ईं-हमा दरमांदगी इंसाँ के ये दा'वेक्या ज़ात-ए-शरीफ़ इन को बनाया है ख़ुदा ने
उड़ जाऊँगा बहार में मानिंद-ए-बू-ए-गुलज़ंजीर मेरे पा-ए-जुनूँ में हज़ार डाल
हमारे ऐब ने बे-ऐब कर दिया हम कोयही हुनर है कि कोई हुनर नहीं आता
छुपा न राज़ मोहब्बत का बू-ए-गुल की तरहजो बात दिल में थी वो दरमियाँ निकल आई
बिखर गया हूँ फ़ज़ाओं में बू-ए-गुल की तरहमिरे वजूद में वुसअत मिरी समा न सकी
ऐ नसीम-ए-सहरी बू-ए-मोहब्बत ले आतुर्रा-ए-यार सती इत्र की महकार कूँ खोल
तिरी तलाश में निकला जो बू-ए-गुल की तरहपलट के फिर वो कभी अपने घर नहीं जाता
उस गुल-बदन की बू-ए-बदन कुछ न पूछिएबंद-ए-क़बा जो खोल दिए घर महक गया
बू-ए-गुल फूलों में रहती थी मगर रह न सकीमैं तो काँटों में रहा और परेशाँ न हुआ
तू बू-ए-गुल है और परेशाँ हुआ हूँ मैंदोनों में एक रिश्ता-ए-आवारगी तो है
बी-ए में पढ़ रहा है ये नॉलिज का हाल हैनक़्शे में लखनऊ को कहे कानपूर है
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