aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "butaan-e-vahm-o-gumaa.n"
हिसार-ए-ख़ौफ़-ओ-हिरास में है बुतान-ए-वहम-ओ-गुमाँ की बस्तीमुझे ख़बर ही नहीं कि अब मैं जुनूब में या शुमाल में हूँ
हाए उस मिन्नत-कश-ए-वहम-ओ-गुमाँ की जुस्तुजूज़िंदगी जिस को न पाए जो न पाए ज़िंदगी
वहम-ओ-गुमाँ ने आस बँधाई तमाम रातआहट ख़िराम-ए-नाज़ की आई तमाम रात
तमाम वहम ओ गुमाँ है तो हम भी धोका हैंइसी ख़याल से दुनिया को मैं ने प्यार किया
बना के वहम ओ गुमाँ की दुनिया हक़ीक़तों के सराब देखूँमैं अपने ही आईने में ख़ुद को जहाँ भी देखूँ ख़राब देखूँ
था मुझे वहम-ओ-गुमाँ की वो फ़क़त मेरी हैऔर उस ने भी भरम मेरा बनाए रक्खा
मुद्दत से मैं सफ़र में हूँ वहम-ओ-गुमाँ के साथये रास्ता तमाम फ़रेब-ए-नज़र न हो
दिया वो जो न था वहम-ओ-गुमाँ मेंभला मैं और क्या माँगूँ ख़ुदा से
कुछ तअल्लुक़ भी नहीं रस्म-ए-जहाँ से आगेउस से रिश्ता भी रहा वहम ओ गुमाँ से आगे
चराग़ सामने वाले मकान में भी न थाये सानेहा मिरे वहम-ओ-गुमान में भी न था
बुतान-ए-सर्व-क़ामत की मोहब्बत में न फल पायारियाज़त जिन पे की बरसों वो नख़्ल-ए-बे-समर निकले
इश्क़ मरहून-ए-हिकायात-ओ-गुमाँ भी होगावाक़िआ है तो किसी तौर बयाँ भी होगा
बढ़ने लगी यक़ीन ओ गुमाँ में जो कश्मकशव'अदा भी सुब्ह ओ शाम पे टलता चला गया
कब तक नजात पाएँगे वहम ओ यक़ीं से हमउलझे हुए हैं आज भी दुनिया ओ दीं से हम
बुतान-ए-शहर तुम्हारे लरज़ते हाथों मेंकोई तो संग हो ऐसा कि मेरा सर ले जाए
वहम ओ ख़िरद के मारे हैं शायद सब लोगदेख रहा हूँ शीशे के घर चारों ओर
बुतान-ए-हिन्द मिरे दिल में हैं दर आए हुएख़ुदा के घर को घर अपना हैं ये बनाए हुए
बुतान-ए-शहर को ये ए'तिराफ़ हो कि न होज़बान-ए-इश्क़ की सब गुफ़्तुगू समझते हैं
ख़याल-ओ-वहम है मंज़िल यहाँ मिली है किसेचला है जो भी उसी रहगुज़र में रहता है
ख़ूब-रूई पे है क्या नाज़ बुतान-ए-लंदनहैं फ़क़त रूई के गालों की तरह गाल सफ़ेद
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