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शेर
'नाशाद' न कोई नग़्मा है ये दर्द भरा इक नाला है
क्या समझे कोई दर्द-ए-जिगर जब चोट न दिल पर खाई हो
राबिया सुलताना नाशाद
शेर
किसी के दर्द-ए-मोहब्बत ने उम्र भर के लिए
ख़ुदा से माँग लिया इंतिख़ाब कर के मुझे
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
इक ख़लिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया
जान कर हम ने उन्हें ना-मेहरबाँ रहने दिया
अदीब सहारनपुरी
शेर
ऐ नवा-साज़-ए-तमाशा सर-ब-कफ़ जलता हूँ मैं
इक तरफ़ जलता है दिल और इक तरफ़ जलता हूँ मैं