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शेर
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ
ख़्वाजा मीर दर्द
शेर
ग़ाफ़िल इतना हुस्न पे ग़र्रा ध्यान किधर है तौबा कर
आख़िर इक दिन सूरत ये सब मिट्टी में मिल जाएगी
भारतेंदु हरिश्चंद्र
शेर
लैलतुल-क़द्र है हर शब उसे हर रोज़ है ईद
जिस ने मय-ख़ाने में माह-ए-रमज़ाँ देखा है
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
शेर
हक़्क़-ए-मेहनत उन ग़रीबों का समझते गर अमीर
अपने रहने का मकाँ दे डालते मज़दूर को
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
शेर
ढूँड लेंगे जब कोई तुम सा तभी चैन आएगा
हम भी अपनी फ़िक्र में रहते हैं कुछ ग़ाफ़िल नहीं
लाला माधव राम जौहर
शेर
मिरे दिल से कभी ग़ाफ़िल न हों ख़ुद्दाम-ए-मय-ख़ाना
ये रिंद-ए-ला-उबाली बे-पिए भी तो बहकता है
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
दिल ही दिल में याँ मोहब्बत अपना घर करती रही
हम रहे ग़ाफ़िल वो सौ टुकड़े जिगर करती रही