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शेर
यूँ ही गर रोता रहा 'ग़ालिब' तो ऐ अहल-ए-जहाँ
देखना इन बस्तियों को तुम कि वीराँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
ग़म-ए-जहाँ को शर्मसार करने वाले क्या हुए
वो सारी उम्र इंतिज़ार करने वाले क्या हुए