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शेर
पी बादा-ए-अहमर तो ये कहने लगा गुल-रू
मैं सुर्ख़ हूँ तुम सुर्ख़ ज़मीं सुर्ख़ ज़माँ सुर्ख़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
गरचे तुम ताज़ा गुल-ए-गुलशन-ए-रानाई हो
फिर भी ये ऐब है इक तुम में कि हरजाई हो
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
सरवत हुसैन
शेर
नज़्र को किस गुल-ए-नौ-रस्ता के दामन में नसीम
भर के फूलों का इक अम्बार लिए फिरती है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
ग़ज़ल इस बहर में क्या तुम ने लिखी है ये 'नसीर'
जिस से है रंग-ए-गुल-ए-मअनी-ए-मुश्किल टपका
शाह नसीर
शेर
ख़फ़ा देखा है उस को ख़्वाब में दिल सख़्त मुज़्तर है
खिला दे देखिए क्या क्या गुल-ए-ताबीर-ए-ख़्वाब अपना
नज़ीर अकबराबादी
शेर
बरसों गुल-ए-ख़ुर्शीद ओ गुल-ए-माह को देखा
ताज़ा कोई दिखलाए हमें चर्ख़-ए-कुहन फूल
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
शेर
रोया तमाम उम्र वो शबनम के साथ साथ
फिर क्यों कहूँ कि दर्द-ए-गुल-ए-तर में कुछ न था