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शेर
ख़याल उस सफ़-ए-मिज़्गाँ का दिल में आएगा
हमारे मुल्क में भरती सिपाह की होगी
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
शेर
गो कि हम सफ़्हा-ए-हस्ती पे थे एक हर्फ़-ए-ग़लत
लेकिन उठ्ठे भी तो इक नक़्श बिठा कर उठे
मोमिन ख़ाँ मोमिन
शेर
क्या क्या बदन-ए-साफ़ नज़र आते हैं हम को
क्या क्या शिकम ओ नाफ़ नज़र आते हैं हम को
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
बात सच है सच कहूँगा हर घड़ी हर मोड़ पर
लाख आए ज़िंदगी में चाहे दुश्वारी मुझे