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शेर
सूरज को ये ग़म है कि समुंदर भी है पायाब
या रब मिरे क़ुल्ज़ुम में कोई सैल-ए-रवाँ और
हिमायत अली शाएर
शेर
मैं कुछ न कहूँ और ये चाहूँ कि मिरी बात
ख़ुश्बू की तरह उड़ के तिरे दिल में उतर जाए