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शेर
हाए-री मजबूरियाँ तर्क-ए-मोहब्बत के लिए
मुझ को समझाते हैं वो और उन को समझाता हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
शेर
तर्क-ए-मोहब्बत करने वालो कौन ऐसा जुग जीत लिया
इश्क़ से पहले के दिन सोचो कौन बड़ा सुख होता था
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
हक़ीक़त खुल गई 'हसरत' तिरे तर्क-ए-मोहब्बत की
तुझे तो अब वो पहले से भी बढ़ कर याद आते हैं