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शेर
मस्जिद तो बना दी शब भर में ईमाँ की हरारत वालों ने
मन अपना पुराना पापी है बरसों में नमाज़ी बन न सका
अल्लामा इक़बाल
शेर
कभी ख़ुशबू कभी साया कभी पैकर बन कर
सभी हिज्रों में विसालों में मिरे पास रहो
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
मिरी ख़ाक उस ने बिखेर दी सर-ए-रह ग़ुबार बना दिया
मैं जब आ सका न शुमार में मुझे बे-शुमार बना दिया