aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "jamiil"
हम से कोई तअल्लुक़-ए-ख़ातिर तो है उसेवो यार बा-वफ़ा न सही बेवफ़ा तो है
हम तो तमाम उम्र तिरी ही अदा रहेये क्या हुआ कि फिर भी हमीं बेवफ़ा रहे
जलाने वाले जलाते ही हैं चराग़ आख़िरये क्या कहा कि हवा तेज़ है ज़माने की
अपनी नाकामियों पे आख़िर-ए-कारमुस्कुराना तो इख़्तियार में है
हम मोहब्बत का सबक़ भूल गएतेरी आँखों ने पढ़ाया क्या है
कैसे थे लोग जिन की ज़बानों में नूर थाअब तो तमाम झूट है सच्चाइयों में भी
अगर ये ज़िद है कि मुझ से दुआ सलाम न होतो ऐसी राह से गुज़रो जो राह-ए-आम न हो
होने दो चराग़ाँ महलों में क्या हम को अगर दीवाली हैमज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम मज़दूर की दुनिया काली है
सो जाइए हुज़ूर कि अब रात हो गईजो बात होने वाली थी वो बात हो गई
सदियों से ज़माने का ये अंदाज़ रहा हैसाया भी जुदा हो गया जब वक़्त पड़ा है
अब तो तेरे हुस्न की हर अंजुमन में धूम हैजिस ने मेरा हाल देखा तेरा दीवाना हुआ
घर अपना किसी और की नज़रों से न देखोहर तरह से उजड़ा है मगर फिर भी सजा है
मैं तो तन्हा था मगर तुझ को भी तन्हा देखाअपनी तस्वीर के पीछे तिरा चेहरा देखा
दिल की क़ीमत तो मोहब्बत के सिवा कुछ भी न थीजो मिले सूरत-ए-ज़ेबा के ख़रीदार मिले
हम सितारों की तरह डूब गएदिन क़यामत के इंतिज़ार में है
ख़त्म हो जाएँ जिन्हें देख के बीमारी-ए-दिलढूँड कर लाएँ कहाँ से वो मसीहा चेहरे
ब-क़द्र-ए-पैमाना-ए-तख़य्युल सुरूर हर दिल में है ख़ुदी काअगर न हो ये फ़रेब-ए-पैहम तो दम निकल जाए आदमी का
या इलाहाबाद में रहिए जहाँ संगम भी होया बनारस में जहाँ हर घाट पर सैलाब है
एक ज़रा सी भूल पे हम को इतना तू बदनाम न करहम ने अपने घाव छुपा कर तेरे काज सँवारे हैं
कुंज-ए-क़फ़स ही जिस का मुक़द्दर हुआ 'जमील'उस की नज़र में दौर-ए-ख़िज़ाँ क्या बहार क्या
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