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शेर
बे तेरे क्या वहशत हम को तुझ बिन कैसा सब्र ओ सुकूँ
तू ही अपना शहर है जानी तू ही अपना सहरा है
इब्न-ए-इंशा
शेर
'जामी' मैं तसव्वुर में वहाँ पहुँचा हुआ हूँ
हाँ मुझ को मिरे शाह-ए-नजफ़ देख रहे हैं
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
शेर
मिरी क़िस्मत लिखी जाती थी जिस दिन मैं अगर होता
उड़ा ही लेता दस्त-ए-कातिब-ए-तक़दीर से काग़ज़