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शेर
क्या करिश्मा है मिरे जज़्बा-ए-आज़ादी का
थी जो दीवार कभी अब है वो दर की सूरत
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
शेर
उसी को हश्र कहते हैं जहाँ दुनिया हो फ़रियादी
यही ऐ मीर-ए-दीवान-ए-जज़ा क्या तेरी महफ़िल है
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
हैं ये जज़्बात मिरे दर्द भरे दिल के फ़िगार
लफ़्ज़ बन बन के जो अशआ'र तक आ पहुँचे हैं
फ़िगार उन्नावी
शेर
अगर कुछ रोज़ ज़िंदा रह के मर जाना मुक़द्दर है
तो इस दुनिया में आख़िर बाइस-ए-तख़्लीक़-ए-जाँ क्या था
जगत मोहन लाल रवाँ
शेर
'आज़ुर्दा' मर के कूचा-ए-जानाँ में रह गया
दी थी दुआ किसी ने कि जन्नत में घर मिले
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
शेर
जो पहुँचेंगे तो हम पहुँचेंगे मर कर कू-ए-जानाँ तक
कि जीते-जी कोई जन्नत में दाख़िल हो नहीं सकता
जलील मानिकपूरी
शेर
हर्फ़ सारे बोल उट्ठें जब भी मैं लिखने लगूँ
अब कोई जज़्बा मिरा महव-ए-दुआ लगता नहीं
बहारुन्निसा बहार
शेर
मिरी ज़िंदगी का महवर यही सोज़-ओ-साज़-ए-हस्ती
कभी जज़्ब-ए-वालहाना कभी ज़ब्त-ए-आरिफ़ाना
फ़ारूक़ बाँसपारी
शेर
जाँ-ब-लब लम्हा-ए-तस्कीं मिरी क़िस्मत है 'शमीम'
बे-ख़ुदी फिर मुझे दीवाना बनाती क्यूँ है
शख़ावत शमीम
शेर
मैं जाँ-ब-लब हूँ ऐ तक़दीर तेरे हाथों से
कि तेरे आगे मिरी कुछ न चल सकी तदबीर