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शेर
इन दिनों गरचे दकन में है बड़ी क़द्र-ए-सुख़न
कौन जाए 'ज़ौक़' पर दिल्ली की गलियाँ छोड़ कर
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
शेर
मय-कदे में क्या तकल्लुफ़ मय-कशी में क्या हिजाब
बज़्म-ए-साक़ी में अदब आदाब मत देखा करो
अहमद फ़राज़
शेर
जमील मज़हरी
शेर
जिसे इशरत-कदा-ए-दहर समझता था मैं
आख़िर-ए-कार वो इक ख़्वाब-ए-परेशाँ निकला