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शेर
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
शेर
सिराज लखनवी
शेर
अल्लाह-रे काफ़िरी तिरे तर्ज़-ए-ख़िराम की
नक़्श-ए-क़दम से कर दिया काबे को सोमनात