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शेर
'क़ाएम' हयात-ओ-मर्ग-ए-बुज़-ओ-गाव में हैं नफ़अ
इस मर्दुमी के शोर पे किस काम का हूँ मैं
क़ाएम चाँदपुरी
शेर
अल्लाह अल्लाह ये हंगामा-ए-पैकार-ए-हयात
अब वो आवाज़ भी देते हैं तो सुनते नहीं हम
सय्यद नवाब अफ़सर लखनवी
शेर
अब दिलों में कोई गुंजाइश नहीं मिलती 'हयात'
बस किताबों में लिक्खा हर्फ़-ए-वफ़ा रह जाएगा
हयात लखनवी
शेर
फ़िक्र-ए-फ़र्दा ग़म-ए-इमरोज़ ग़म-ए-मौत-ओ-हयात
आदमी क्या हुआ मजमूआ'-ए-आलाम हुआ
मेह्र निज़ामी मेरठी
शेर
लोगों को अपनी फ़िक्र है लेकिन मुझे नदीम
बज़्म-ए-हयात-ओ-नज़्म-ए-गुलिस्ताँ की फ़िक्र है