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शेर
क्या कहूँ कैफ़िय्यत-ए-दिल किस क़दर टूटा हूँ मैं
अब अगर चाहा गया तो रेत में मिल जाऊँगा
एहतमाम सादिक़
शेर
कैफ़ियत-ए-तज़ाद अगर हो न बयान-ए-शे'र में
'नातिक़' इसी पे रोए क्यूँ चंग-नवाज़ गाए क्यूँ
नातिक़ गुलावठी
शेर
अब दर्द में वो कैफ़ियत-ए-दर्द नहीं है
आया हूँ जो उस बज़्म-ए-गुल-अफ़्शाँ से गुज़र के
अली जवाद ज़ैदी
शेर
सुकून-ए-इज़्तिराब-ए-ग़म पे चारा-साज़ तो ख़ुश हैं
दिल-ए-बेताब की लेकिन क़ज़ा मालूम होती है
अब्दुल हई आरफ़ी
शेर
ब-पास-ए-एहतिराम-ए-इश्क़ हम ख़ामोश हैं वर्ना
परेशाँ कर भी सकते हैं परेशाँ हो भी सकते हैं