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शेर
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
अल्लामा इक़बाल
शेर
ग़म-ओ-कर्ब-ओ-अलम से दूर अपनी ज़िंदगी क्यूँ हो
यही जीने का सामाँ हैं तो फिर इन में कमी क्यूँ हो
मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
शेर
इक कर्ब का मौसम है जो दाइम है अभी तक
इक हिज्र का क़िस्सा कि मुकम्मल नहीं होता
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
शेर
'मुसहफ़ी' कर्ब-ओ-बला का सफ़र आसान नहीं
सैंकड़ों बसरा-ओ-बग़दाद में मर जाते हैं