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शेर
बुतों में किस बला की है कशिश अल्लाह ही जाने
चले थे शौक़-ए-काबा में सनम-ख़ाने में जा निकले
रंजूर अज़ीमाबादी
शेर
कुछ ख़ुद में कशिश पैदा कर लो कि महफ़िल तुम से आँख भरे
ये चाल बड़े अय्यार की है ये चाल न ख़ाली जाएगी