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शेर
दर्द तू मेरे पास से मरते तलक न जाइयो
ताक़त-ए-सब्र हो न हो ताब-ओ-क़रार हो न हो
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
जो तलब पे अहद-ए-वफ़ा किया तो वो आबरू-ए-वफ़ा गई
सर-ए-आम जब हुए मुद्दई तो सवाब-ए-सिदक़-ओ-वफ़ा गया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शेर
ये आँखें ये दिमाग़ ये ज़ख़्मों का घर बदन
सब महव-ए-ख़्वाब हैं दिल-ए-बे-ताब के सिवा
उबैदुल्लह सिद्दीक़ी
शेर
गए वो दिन कि बहते थे पड़े नाले इन आँखों से
सर-ए-मिज़्गाँ तलक इक अश्क अब आता है मुश्किल से