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शेर
इतना भी बार-ए-ख़ातिर-ए-गुलशन न हो कोई
टूटी वो शाख़ जिस पे मिरा आशियाना था
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
ख़ुशी मेरी गवारा थी न क़िस्मत को न दुनिया को
सो मैं कुछ ग़म बरा-ए-ख़ातिर-ए-अहबाब उठा लाई
हुमैरा राहत
शेर
क्यूँ इश्क़ के झगड़े को ले जाता है उक़्बा में
कर ख़ात्मा दुनिया में दुनिया की मुसीबत का
क़द्र ओरैज़ी
शेर
आशुफ़्ता-ख़ातिरी वो बला है कि 'शेफ़्ता'
ताअत में कुछ मज़ा है न लज़्ज़त गुनाह में