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शेर
नहीं है ना-उमीद 'इक़बाल' अपनी किश्त-ए-वीराँ से
ज़रा नम हो तो ये मिट्टी बहुत ज़रख़ेज़ है साक़ी
अल्लामा इक़बाल
शेर
लगाता फिर रहा हूँ आशिक़ों पर कुफ़्र के फ़तवे
'ज़फ़र' वाइज़ हूँ मैं और ख़िदमत-ए-इस्लाम करता हूँ
ज़फ़र इक़बाल
शेर
मुड़ के जो आ नहीं पाया होगा उस कूचे में जा के 'ज़फ़र'
हम जैसा बे-बस होगा हम जैसा तन्हा होगा
साबिर ज़फ़र
शेर
जाने किस किरदार की काई मेरे घर में आ पहुँची
अब तो 'ज़फ़र' चलना है मुश्किल आँगन की चिकनाई में