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शेर
देख दिल को मिरे ओ काफ़िर-ए-बे-पीर न तोड़
घर है अल्लाह का ये इस की तो तामीर न तोड़
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
बे-ख़ुदी कूचा-ए-जानाँ में लिए जाती है
देखिए कौन मुझे मेरी ख़बर देता है
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
हँस के कहता है मुसव्विर से वो ग़ारत-गर-ए-होश
जैसी सूरत है मिरी वैसी ही तस्वीर भी हो
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
शेर
ज़ि-बस काफ़िर-अदायों ने चलाए संग-ए-बे-रहमी
अगर सब जम'अ करता मैं तो बुत-ख़ाने हुए होते
सिराज औरंगाबादी
शेर
तू गोश-ए-दिल से सुने उस को गर बत-ए-बे-मेहर
फ़साना तुर्फ़ा है और माजरा है ज़ोर मिरा