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शेर
'सहबा' साहब दरिया हो तो दरिया जैसी बात करो
तेज़ हवा से लहर तो इक जौहड़ में भी आ जाती है
सहबा अख़्तर
शेर
फिर आई ज़ुल्फ़-ए-मुसलसल की लहर पेश-ए-नज़र
फिर इक जुनूँ के नए सिलसिले हुए दिल में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
हो गया लाग़र जो उस लैला-अदा के इश्क़ में
मिस्ल-ए-मजनूँ हाल मेरा भी फ़साना हो गया
भारतेंदु हरिश्चंद्र
शेर
आप कहें तो तीन ज़माने एक ही लहर में बह निकलें
आप कहें तो सारी बातों में ऐसी आसानी है