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शेर
ऐ ज़ाहिदो बातिल से क़सम खाओ जो पहले
तो तुम से कहें हम हक़ ओ बातिल की हक़ीक़त
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
उसी दुनिया के कुछ नक़्श-ओ-निगार अशआ'र हैं मेरे
जो पैदा हो रही है हक़्क़-ओ-बातिल के तसादुम से
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
तलाश-ए-सूरत-ए-तस्कीं न कर औहाम-हस्ती में
दिल-ए-महज़ूँ बहल सकता नहीं इस नक़्श-ए-बातिल से
मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
शेर
चश्म-ए-बातिन में से जब ज़ाहिर का पर्दा उठ गया
जो मुसलमाँ था वही हिन्दू नज़र आया मुझे
मीर कल्लू अर्श
शेर
अहबाब का शिकवा क्या कीजिए ख़ुद ज़ाहिर ओ बातिन एक नहीं
लब ऊपर ऊपर हँसते हैं दिल अंदर अंदर रोता है
हफ़ीज़ जालंधरी
शेर
रुश्द-ए-बातिन की तलब है तो कर ऐ शैख़ वो काम
पीर-ए-मय-ख़ाना जो ज़ाहिर में कुछ इरशाद करे
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
शेर
अपना बातिन ख़ूब है ज़ाहिर से भी ऐ जान-ए-जाँ
आँख के लड़ने से पहले जी लड़ा बैठे हैं हम
हातिम अली मेहर
शेर
साफ़ क्या हो सोहबत-ए-ज़ाहिर से बातिन का ग़ुबार
मुँह नज़र आता नहीं आईना-ए-तस्वीर में
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
शेर
'सहबा' साहब दरिया हो तो दरिया जैसी बात करो
तेज़ हवा से लहर तो इक जौहड़ में भी आ जाती है
सहबा अख़्तर
शेर
उस लब-ए-बाम से ऐ सरसर-ए-फुर्क़त तू बता
मिस्ल तिनके के मिरा ये तन-ए-लाग़र फेंका