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शेर
ख़याल उस सफ़-ए-मिज़्गाँ का दिल में आएगा
हमारे मुल्क में भरती सिपाह की होगी
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
शेर
याद-ए-मिज़्गाँ में मिरी आँख लगी जाती है
लोग सच कहते हैं सूली पे भी नींद आती है
वज़ीर अली सबा लखनवी
शेर
मस्जिद अबरू में तेरी मर्दुमुक है जिऊँ इमाम
मू-ए-मिज़्गाँ मुक़तदी हो मिल के करते हैं नमाज़
सिराज औरंगाबादी
शेर
दिल जिगर की मिरे पूछे है ख़बर क्या है ऐ यार
नोक-ए-मिज़्गाँ पे ज़रा देख नुमूदार है क्या
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
गए वो दिन कि बहते थे पड़े नाले इन आँखों से
सर-ए-मिज़्गाँ तलक इक अश्क अब आता है मुश्किल से