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शेर
लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-हब्बत नहीं होती जिस में
दिल वो मिट्टी का वो मिट्टी का जिगर होता है
जलील मानिकपूरी
शेर
लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-हब्बत जो नुमायाँ हो जाए
हर फ़रिश्ते को ये हसरत हो कि इंसाँ हो जाए
निसार यार ज़ंग मिज़ाज
शेर
यूँ बढ़ी साअत-ब-साअत लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-फ़िराक़
रफ़्ता रफ़्ता मैं ने ख़ुद को दुश्मन-ए-जाँ कर दिया
मुईन अहसन जज़्बी
शेर
'मुसहफ़ी' क्यूँके छुपे उन से मिरा दर्द-ए-निहाँ
यार तो बात के अंदाज़ से पा जाते हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
मिरे दर्द-ए-निहाँ का हाल मोहताज-ए-बयाँ क्यूँ हो
जो लफ़्ज़ों का हो मजमूआ वो मेरी दास्ताँ क्यूँ हो
बेदम शाह वारसी
शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
इलाज-ए-दर्द-ए-दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता
तुम अच्छा कर नहीं सकते मैं अच्छा हो नहीं सकता
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
किश्वर-ए-दिल अब मकान-ए-दर्द-ओ-दाग़-ओ-यास है
इश्क़ के हाकिम ने बिठलाए हैं याँ थाने कई
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
दीदा ओ दिल ने दर्द की अपने बात भी की तो किस से की
वो तो दर्द का बानी ठहरा वो क्या दर्द बटाएगा
इब्न-ए-इंशा
शेर
हुजूम-ए-रंज-ओ-ग़म-ओ-दर्द है मरूँ क्यूँकर
क़दम उठाऊँ जो आगे कुशादा राह मिले