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शेर
चर्ख़ को मद्द-ए-नज़र है खींचना पूरी शबीह
माह-ए-नौ तो सिर्फ़ ख़ाका है तिरी तस्वीर का
जलील मानिकपूरी
शेर
विर्द-ए-इस्म-ए-ज़ात खोला चाहता है ये गिरह
मेरे दिल पर दाँत है अल्लाह की तश्दीद का