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शेर
दुनिया का ख़ून दौर-ए-मोहब्बत में है सफ़ेद
आवाज़ आ रही है लब-ए-जू-ए-शीर से
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
ख़रीदारी है शहद ओ शीर ओ क़स्र ओ हूर ओ ग़िल्माँ की
ग़म-ए-दीं भी अगर समझो तो इक धंदा है दुनिया का
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
शेर
साक़िया है तिरी महफ़िल में ख़ुदाओं का हुजूम
महफ़िल-अफ़रोज़ हो इंसाँ तो मज़ा आ जाए
सय्यद आबिद अली आबिद
शेर
मियान-ए-हश्र ये काफ़िर बड़े इतराए फिरते हैं
मज़ा आ जाए ऐसे में अगर सुन ले ख़ुदा मेरी