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शेर
अभी तो हज़रत-ए-वाइज़ मज़म्मत मय की करते हैं
अगर मय-ख़ाने में उन का गुज़र होगा तो क्या होगा
शौक़ बहराइची
शेर
ये मेरे इश्क़ की मजबूरियाँ मआज़-अल्लाह
तुम्हारा राज़ तुम्हीं से छुपा रहा हूँ मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
शेर
न जाने कल हों कहाँ साथ अब हवा के हैं
कि हम परिंदे मक़ामात-ए-गुम-शुदा के हैं