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शेर
अपने सूरत-गर से पूछूँ मैं अगर मक़्दूर हो
क्या बनाया था मुझे तू ने मिटाने के लिए
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
शेर
छुपाने से छुपे कब हैं मिटाने से मिटे कब हैं
पड़े हैं ख़ून-ए-नाहक़ के जो धब्बे तेरे दामाँ पर
फ़हीम हैरत रहीमी
शेर
मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है
मिरी जाँ चाहने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है