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शेर
बिस्मिलों से बोसा-ए-लब का जो वा'दा हो गया
ख़ुद-ब-ख़ुद हर ज़ख़्म का अंगूर मीठा हो गया
मुनीर शिकोहाबादी
शेर
सब मुनज्जम कहते हैं अब है बराबर रात दिन
सर से पा तक देख कर ज़ुल्फ़-ए-दराज़-ए-यार को
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
शेर
मुहताज नहीं क़ाफ़िला आवाज़-ए-दरा का
सीधी है रह-ए-बुत-कदा एहसान ख़ुदा का