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शेर
पर्दा-ए-गोश-ए-असीराँ न हुई इक शब-ए-गर्म
पाँव किस मुर्दे का या-रब मिरी ज़ंजीर में था
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
फूल की पत्ती से कट सकता है हीरे का जिगर
मर्द-ए-नादाँ पर कलाम-ए-नर्म-ओ-नाज़ुक बे-असर
अल्लामा इक़बाल
शेर
अफ़्सुर्दा-दिल के वास्ते क्या चाँदनी का लुत्फ़
लिपटा पड़ा है मुर्दा सा गोया कफ़न के साथ
क़द्र बिलग्रामी
शेर
एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी
शेर
पीर-ए-मुग़ाँ के पास वो दारू है जिस से 'ज़ौक़'
नामर्द मर्द मर्द-ए-जवाँ-मर्द हो गया
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
शेर
न हो एहसास तो सारा जहाँ है बे-हिस-ओ-मुर्दा
गुदाज़-ए-दिल हो तो दुखती रगें मिलती हैं पत्थर में
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
एक बोसे से मुराद-ए-दिल-ए-नाशाद तो दो
कुछ न दो हाथ से पर मुँह से मिरी दाद तो दो