aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "mushaa.ira"
न बात दिल की सुनूँ मैं न दिल सुने मेरीये सर्द जंग है अपने ही इक मुशीर के साथ
'इक़बाल' की नवा से मुशर्रफ़ है गो 'नईम'उर्दू के सर पे 'मीर' की ग़ज़लों का ताज है
हर-चंद हो मुशाहिदा-ए-हक़ की गुफ़्तुगूबनती नहीं है बादा-ओ-साग़र कहे बग़ैर
जब वो ज़ख़्मों से दवा बाँधता हैदर्द कुछ और मज़ा बाँधता है
ग़ज़ल कही है कोई भाँग तो नहीं पी हैमुशाइरे में तरन्नुम से क्यूँ सुनाऊँ मैं
पयम्बरों ने कहा था कि झूट हारेगामगर ये देखिए अपना मुशाहिदा क्या है
मसर्रतों ने तो चाहा था दिल में आ जाएँहुजूम-ए-ग़म ने मगर उन को रास्ता न दिया
वही सुलूक ज़माने ने मेरे साथ कियाकिया था जैसा मुशर्रफ़ ने बेनज़ीर के साथ
वो सुन सकें कोई उनवाँ इसी लिए हम नेबदल बदल के उन्हें दास्ताँ सुनाई है
ख़त दीजियो छुपा के मिले वो अगर कहींलेना न मेरे नाम को ऐ नामा-बर कहीं
मुशाहिदा है कि अहल-ए-ख़िरद हुए पसपाजहाँ भी अहल-ए-जुनूँ से मुक़ाबला ठहरा
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