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शेर
दोस्तो क्या क्या दिवाली में नशात-ओ-ऐश है
सब मुहय्या है जो इस हंगाम के शायाँ है शय
नज़ीर अकबराबादी
शेर
तेरी फ़ुर्क़त में शराब-ए-ऐश का तोड़ा हुआ
जाम-ए-मय दस्त-ए-सुबू के वास्ते फोड़ा हुआ
मुनीर शिकोहाबादी
शेर
ऐश-ए-जहाँ बग़ल में तुम्हारी सब आ रहा
दिल ही दिया जो तुम को तो फिर और क्या रहा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
खुलता है क़ुफ़्ल-ए-ऐश मिरा इस से 'मुसहफ़ी'
जिस के इज़ार-बंद में छोटी कलीद है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
तंगी-ए-ऐश में मुमकिन नहीं तर्क-ए-लज़्ज़त
सूखे टुकड़े भी तो फ़ाक़ों में मज़ा देते हैं
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
शेर
तलाश इस तरह बज़्म-ए-ऐश में है बे-निशानों की
कोई कपड़े में जैसे ज़ख़्म-ए-सोज़न का निशाँ ढूँढे
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
शेर
साँसों की जल-तरंग पर नग़्मा-ए-इश्क़ गाए जा
ऐ मिरी जान-ए-आरज़ू तू यूँही मुस्कुराए जा