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शेर
कुछ ऐसा है फ़रेब-ए-नर्गिस-ए-मस्ताना बरसों से
कि सब भूले हुए हैं काबा ओ बुत-ख़ाना बरसों से
इक़बाल सुहैल
शेर
सुब्ह-दम मुझ से लिपट कर वो नशे में बोले
तुम बने बाद-ए-सबा हम गुल-ए-नसरीन हुए
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
आँखें मिरी फूटें तिरी आँखों के बग़ैर आह
गर मैं ने कभी नर्गिस-ए-बीमार को देखा
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शेर
अभी मस्जिद-नशीन-ए-तारुम-ए-अफ़्लाक हो जावे
जो सब कुछ छोड़ दिल तेरे क़दम की ख़ाक हो जावे
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
क्या तुम्हें अहद-ए-मोहब्बत के वो लम्हे याद हैं
जब निगाहें बोलती थीं और हम ख़ामोश थे