aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "nashista"
ये कैसा नश्शा है मैं किस अजब ख़ुमार में हूँतू आ के जा भी चुका है मैं इंतिज़ार में हूँ
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लोनश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
शाएर को मस्त करती है तारीफ़-ए-शेर 'अमीर'सौ बोतलों का नश्शा है इस वाह वाह में
हवा में नश्शा ही नश्शा फ़ज़ा में रंग ही रंगये किस ने पैरहन अपना उछाल रक्खा है
अभी दो चार ही बूँदें गिरीं हैंमगर मौसम नशीला हो गया है
नश्शा था ज़िंदगी का शराबों से तेज़-तरहम गिर पड़े तो मौत उठा ले गई हमें
ख़ुदी का नश्शा चढ़ा आप में रहा न गयाख़ुदा बने थे 'यगाना' मगर बना न गया
माज़ी से उभरीं वो ज़िंदा तस्वीरेंउतर गया सब नश्शा नए पुराने का
तुम आ गए हो तुम मुझ को ज़रा सँभलने दोअभी तो नश्शा सा आँखों में इंतिज़ार का है
सफ़र का नश्शा चढ़ा है तो क्यूँ उतर जाएमज़ा तो जब है कोई लौट के न घर जाए
नश्शा-ए-यार का नशा मत पूछऐसी मस्ती कहाँ शराबों में
तअ'ना-ए-नश्शा न दो सब को कि कुछ सोख़्ता-जाँशिद्दत-ए-तिश्ना-लबी से भी बहक जाते हैं
नश्शा सा डोलता है तिरे अंग अंग परजैसे अभी भिगो के निकाला हो जाम से
ता-मर्ग मुझ से तर्क न होगी कभी नमाज़पर नश्शा-ए-शराब ने मजबूर कर दिया
मय-कदे में नश्शा की ऐनक दिखाती है मुझेआसमाँ मस्त ओ ज़मीं मस्त ओ दर-ओ-दीवार मस्त
तब्दीलियों का नश्शा मुझ पर चढ़ा हुआ हैकपड़े बदल रहा हूँ चेहरा बदल रहा हूँ
मैं था किसी की याद थी जाम-ए-शराब थाये वो नशिस्त थी जो सहर तक जमी रही
जो फ़क़्र में सुरूर है शाही में वो कहाँहम भी रहे हैं नश्शा-ए-दौलत में चार दिन
डुबोए देता है ख़ुद-आगही का बार मुझेमैं ढलता नश्शा हूँ मौज-ए-तरब उभार मुझे
तमाम रात वो पहलू को गर्म करता रहाकिसी की याद का नश्शा शराब जैसा था
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