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शेर
गर शैख़ अज़्म-ए-मंज़िल-ए-हक़ है तो आ इधर
है दिल की राह सीधी व का'बे की राह कज
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
शेर
नज़्र-ए-ग़म शायद हर अश्क-ए-ख़ूँ-चकाँ करना पड़े
क्या ख़बर कितनी बहारों को ख़िज़ाँ करना पड़े
सिराज लखनवी
शेर
उन सफ़ीनों की तबाही में है इबरत का सबक़
जो किनारे तक पहुँच कर नज़्र-ए-तूफ़ाँ हो गए
महफूजुर्रहमान आदिल
शेर
ये है आवारा-तबीअत और वो नाज़ुक-मिज़ाज
मैं दिल-ए-वारफ़्ता नज़्र-ए-यार कर सकता नहीं
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
शेर
मज़हर-ए-हक़ कब नज़र आता है इन शैख़ों के तईं
बस-कि आईने पर इन आहन-दिलों के ज़ंग है