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शेर
फिर उस की याद ने दस्तक दिल-ए-हज़ीं पर दी
फिर आँसुओं में निहाँ उस के ख़द-ओ-ख़ाल हुए
तहसीन फ़िराक़ी
शेर
निछावर बुत-कदे पर दिल करूँ का'बा तो कोसों है
कहाँ ले जाऊँ इतनी दूर क़ुर्बानी मोहब्बत की