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शेर
बे-तकल्लुफ़ आ गया वो मह दम-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न
रह गया पास-ए-अदब से क़ाफ़िया आदाब का
मुनीर शिकोहाबादी
शेर
तू है मअ'नी पर्दा-ए-अल्फ़ाज़ से बाहर तो आ
ऐसे पस-मंज़र में क्या रहना सर-ए-मंज़र तो आ
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
शेर
अभी आते नहीं उस रिंद को आदाब-ए-मय-ख़ाना
जो अपनी तिश्नगी को फ़ैज़-ए-साक़ी की कमी समझे
आल-ए-अहमद सुरूर
शेर
पास-ए-पिंदार-ए-तबीअत दिल अगर रख ले तो क्या
है वजूद-ए-दर्द मोहकम ज़ब्त-ए-ग़म कर ले तो क्या
ज़ियाउद्दीन अहमद शकेब
शेर
ब-पास-ए-एहतिराम-ए-इश्क़ हम ख़ामोश हैं वर्ना
परेशाँ कर भी सकते हैं परेशाँ हो भी सकते हैं