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शेर
मेरा अज़्म इतना बुलंद है कि पराए शोलों का डर नहीं
मुझे ख़ौफ़ आतिश-ए-गुल से है ये कहीं चमन को जला न दे
शकील बदायूनी
शेर
आँखों को फोड़ डालूँ या दिल को तोड़ डालूँ
या इश्क़ की पकड़ कर गर्दन मरोड़ डालूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
तुम को बेगाने भी अपनाते हैं मैं जानता हूँ
मेरे अपने भी पराए हैं तुम्हें क्या मालूम
सैफ़ुद्दीन सैफ़
शेर
अपने पराए थक गए कह कर हर कोशिश बेकार रही
वक़्त की बात समझ में आई वक़्त ही के समझाने से
शौकत परदेसी
शेर
मैं दौड़ दौड़ के ख़ुद को पकड़ के लाता हूँ
तुम्हारे इश्क़ ने बच्चा बना दिया है मुझे
लियाक़त जाफ़री
शेर
पारा-ए-दिल है वतन की सरज़मीं मुश्किल ये है
शहर को वीरान या इस दिल को वीराना कहें