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शेर
हम रू-ब-रू-ए-शम्अ हैं इस इंतिज़ार में
कुछ जाँ परों में आए तो उड़ कर निसार हों
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
ख़्वाहिश की तितलियों ने मुलाएम परों के साथ
दस्तक जहाँ पे दी वो तुम्हारा ही दर तो है