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शेर
ख़ाक उछालो जो ज़मीं पर तो फ़लक पर गिर जाए
अब खुला ये कि बहुत पस्त है हिम्मत मेरी
सुहैल अज़ीमाबादी
शेर
अजब क्या है हम ऐसे गर्म-रफ़्तारों की ठोकर से
ज़माने के बुलंद-ओ-पस्त का हमवार हो जाना
यगाना चंगेज़ी
शेर
बस कि है पेश-ए-नज़र पस्त-ओ-बुलंद-ए-आलम
ठोकरें खा के मिरी आँखों में ख़्वाब आता है