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शेर
इन्ही हैरत-ज़दा आँखों से देखे हैं वो आँसू भी
जो अक्सर धूप में मेहनत की पेशानी से ढलते हैं
जमील मज़हरी
शेर
रूह की गहराई में पाता हूँ पेशानी के ज़ख़्म
सिर्फ़ चाहा ही नहीं मैं ने उसे पूजा भी है
अख़्तर होशियारपुरी
शेर
इश्क़ का एजाज़ सज्दों में निहाँ रखता हूँ मैं
नक़्श-ए-पा होती है पेशानी जहाँ रखता हूँ मैं
बहज़ाद लखनवी
शेर
हँसना रोना पाना खोना मरना जीना पानी पर
पढ़िए तो क्या क्या लिक्खा है दरिया की पेशानी पर
अखिलेश तिवारी
शेर
होंटों से उस दर्द की ख़ुशबू आ कर जिस्म में फैल गई
कितना दर्द इकट्ठा था उस ठंडी सी पेशानी में
ज़िया ज़मीर
शेर
जो कि पेशानी पे लिक्खा है वही होता है
नहीं होतीं कभी इक शख़्स की तक़दीरें दो
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
ख़ुदा को जिस से पहुँचें हैं वो और ही राह है ज़ाहिद
पटकते सर तिरी गो घिस गई सज्दों से पेशानी