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शेर
तड़ावे के लिए है ख़्वान पोश महर-ओ-मह नादाँ
फ़रेब-ए-चर्ख़ मत खाना कहीं, ये ख़्वान ख़ाली है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
तेरे ख़ुश-पोश फ़क़ीरों से वो मिलते तो सही
जो ये कहते हैं वफ़ा पैरहन-ए-चाक में है
सय्यद आबिद अली आबिद
शेर
बस कि है पेश-ए-नज़र पस्त-ओ-बुलंद-ए-आलम
ठोकरें खा के मिरी आँखों में ख़्वाब आता है